Sunday, 11 March 2007

कशमीर केरॊ लोर

कशमीर केरॊ लोर

नद्दी उफनी-उफनी कॆ शहर मॆं बहै छै
लहू अबॆ नस मॆं नै सङक पर बहै छै.
डार सुखलॊ प्यार के पत्ता झरी गेलै
बीयाबानॊ मॆं ऐन्हे जालिम हवा बहै छै.
धूरा-बवंडर मॆं लेबझैलॊ शहरॊ के पॊर
कोरे-कोर धोधैलॊ रेत बेसुमार बहै छै.
कन-कन ठार जिगर धुंध कोहासॊ सगर
जेहादी धार मॆं स्वर्ग व आजादी बहै छै.
छिरयैलै आतंकी आगिन झरखलै संसार
लॊर कश्मीर के संघरलै तॆ दुनिया दहै छै.


kautilya dutt
Mumbai

1 comment:

Chandan Kumar said...

mitti ki khusboo aati hai mere dost...sach me...